जिन परम्परा का अर्थ है - जिन द्वारा प्रवर्तित दर्शन। जो जिन के अनुयायी हों उन्हें जैन कहते हैं। जिन शब्द बना है संस्कृत के जि धातु से। जि माने - जीतना। जिन माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी तन-मन-वाणी को जीत लिया और विशिष्ट आत्मज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेन्द्र या जिन कहा जाता है। जैन धर्म अर्थात जिन भगवान् का धर्म।
जैन दर्शन इस संसार को किसी ईश्वर द्वारा बनाया हुआ स्वीकार नहीं करता है, अपितु शाश्वत मानता है। जन्म मरण आदि जो भी होता है, उसे नियंत्रित करने वाली कोई सार्वभौमिक सत्ता नहीं है। जीव जैसे कर्म करता है, उन के परिणाम स्वरुप अच्छे या बुरे फलों को भुगतने के लिए वह मनुष्य, नरक, देव, एवं तिर्यंच (जानवर) योनियों में जन्म मरण करता रहता है।
जैन धर्म के अनुसार सृष्टिकर्ता कोई ईश्वर नहीं हैं, किंतु संसार वास्तविक तथ्य है जो अनादिकाल से विद्यमान है।
यह लोक छः द्रव्यों - जीव (चेतन), पुद्गल (भौतिक तत्त्व) धर्म, अधर्म आकाश एवं काल से निर्मित है।
जीव के सिवाय सभी द्रव्य (पुद्गल आदि पांचों) अजीव तत्त्व हैं। सभी द्रव्य तत्त्वतः अविनाशी एवं शाश्वत हैं। किसी भी द्रव्य (पदार्थ) की न तो उत्पत्ति होती है और न ही विनाश होता है, मात्र इन द्रव्यों की अवस्थाओं में परिवर्तन होता रहता है। इन द्रव्यों के भाँति-भाँति के संगठन-विघटन से विभिन्न वस्तुओं का स्वरूप अस्तित्व में आता है तथा उनका रूप परिवर्तित होता है।
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