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Oswal

👉यदि आप ओसवाल जैन हे तो अवश्य पढ़े 
👇  और आगे भी जानकरी दे                                                      🙏🏻 जय गुरु रत्नप्रभ्  सूरिजी🙏🏻    
                                     
👌यदिआप ओसवाल जैन हो, और आपको यदि अपने जैन होने पे यदि गर्व हैं, तो समज जाना की आपके ऊपर सबसे बड़ा उपकार (महाजन, उपकेश) ओसवाल वंश के जनक  परम् पूज्य रत्नप्रभ सूरिजी का हे। जिन्होंने हमे जैन बनाया, अतः विन्रम निवेदन अपने किसी भी त्यौहार  उत्सव समारोह आयोजन पर उनको याद कर वन्दन कर कृतग्नता अवश्य प्रगट करे।*   👉 "जानीए ओसवालो का इतिहास"
""उपकेष"' ""महाजन"" ""ओसवाल""

मरुधर मे आबाद हुआ  उपकेशपुर (ओसिया) वाममार्गिओ का केन्द्र था । जगतपुज्य जैनाचार्य "श्रीमद रत्नप्रभ सुरिजी महाराज" भगवान महावीर के निर्वाण के करीब 70 साल बाद 500 शिष्यो के साथ अनेक कठिनाइओ का सामना करते हुए ओसिया पधारे !
शुद्ध आहार पानी के आभाव के कारण आपने चार चार मास का तप कर ध्यान लगा दिया, आप का आत्मबल का जनता व वहां के राजा पर इतना प्रभाव हुआ की राजा और प्रजा ने मांस मदिरा एवं व्यभिचार को त्याग कर जगत पुज्य गुरूदेव के चरणों में नत मस्तक हो गये ! देवी का लाया हुआ वासक्षेप और मंत्रो से उन सब क्षत्रीय की शुद्धि कर जैन धर्म की शिक्षा व दीक्षा देकर "महाजन संघ" (ओसवाल) की स्थापना वीर संवत 70 श्रावण वदी तेरस 13 को की !
और उसी दिन भगवान महावीर के मंदिर की नींव रखी ताकि ओसवाल भाई जिन मंदिर के दर्शन कर जन (मनुष्य) से जिन (जिनेश्वर) बनने की और अग्रेसित हो सके
"महाजन संघ" ही "उपकेश वंश" व "ओसवाल" के नाम से मशहुर हें !
"उपकेशपुर" के नाम से "महाजन -संघ" का नाम "उपकेश वंश" हुआ जबसे उपकेशपुर का अपभ्रंश "ओसिया" हुआ, तब से "उपकेश वंश"  "ओसवाल" हो गया !                                   🌺 महाजनवंश की स्थापना के बाद 303 वर्षो मे 18 गोत्र हुए :
(1) तातेड़ - जिसकी 22 शखाऐ !
(2) बाफ़णा (बाफ्ना)-जिसकी जागडा, नाहटा,वैतालादि 52 शाखाए !
(3) करणावट - जिसकी 14 शाखाए !
(4) वलाह-जिसकी रांका,वांका,सेठ आदि 26 साखए !
(5) मोरख - पोकरणा दि 17 शाखए !
(6) कुलहट - सुरवादि 18 शाखाए !
(7) विरहट - भुरंटादी  17 शाखाए !
(8) श्रीश्रीमाल - कोटडियादि  22 शाखाए !
(9) श्रेष्टि - वैधमुथादी 30 शाखाए !
(10) संचेती - ढेलडियादी 44 शाखाए !
(11) आदित्यनाग -चोरडिया, गुलेच्छा, गदईया, पारख, सामसुखा, नाबरीयादी 85 शाखाए !
(12) भूरी - भटेवरादि 20 शाखाए !
(13) भाद्र - समदडिया , भांडावतादि !
(14) चिंचट - देसरडा ,     देसरलादि !
(15) कुंम्भट -  कुम्भट, काजलियादि !
(16) डिडू --  कोचर , कोचर मेहतादि !
(17)  कन्नोजिया -- वडवटादि !
(18) लघुश्रेष्टि-- वर्धमानादि !                        
इन "18"गोत्र कीआगे चल कर 499 शाखाए हुई ईस के बाद मे भी लाखो अजैनो को जैन बनाया गया जिनकी जातिओ की संख्या अपार हें !
आकाश मे जब तक 🌞सूरज ⚪  चान्द रहेगा तब तक "ओसवाल" जाती जगत पुज्य जैनाचार्य श्री "रत्नप्रभसुरीश्र्व्रजी" के उपकारों से  मुक्त नही हो सकती !
एसे महान उपकारी गुरूदेव के चरणो मे सदेव कोटी कोटी  वन्दंन !
👌जीवन मे चाहे ओर गुरूदेव को मानो अच्छी बात हे, पर यदि आप "महाजन"  "उपकेश वंश"  "ओसवाल " जैन हें तो सबसे पहले आप पर जगत पुज्य गुरूदेव का ऋण है, अत: जीवन मे प्रतिदिन एक बार तो जगत पुज्य गुरुदेव के उपकारों का स्मरण कर उन्हें नमन अवश्य करें व जीवन मे गुरु ऋण व पैतृक स्थान के ऋण को थोडा सा भी उतारने के लिए उपकेशपुर जो अब औसीया के नाम से प्रसिद्ध है जरुर जाएँ !!  और भगवान महावीर की पूजा अर्चना कर माता के मंदिर के दर्शन कर व गुरुदेव को वन्दन कर परम् सुख को प्राप्त करे ।।
🎪आज क्रतज्ञता के युग मे साधारण व्यक्तियो की भी जयंतियाँ बडे ही समारोह से मनाई जा रही हें, तब जैन  समाज के इन महान उपकारी जगत गुरु रत्नप्रभसुरिजी का शायद कई ओसवाल बंधु नाम भी नही जानते हैं !
जब जब लोग अपने मूल को भूले हैं उसका पतन ही हुआ है, एक समय था, जब ओसवालो की संख्या करोडो मे थी व ओसवालो की छाप जगत पर पड़ती थी मगर आज बड़ी ही दयनीय स्थिति है कही इसके पतन का यही तो कारण नहीं हैं ? कि हमने अपने जन्म एवम् पहचान दाता की,
दूसरे साधारण गुरुअों के प्रभाव में आकर उपेक्षा करनी शुरू कर दी है? यह विचारणीय प्रश्नहे।  *                            🌞 आप चाहे किसी भी पन्थ के किसी भी गुरु को माने पर सबसे पहले रत्न प्रभ सूरिजी की व सूरिजी को माने                               -           आज के जमाने में कुछ ज्ञानी जन कहा करते हे की ओसवाल समाज विघठित हो रहा हे और अपनी ही बात करते हे , पर मूल जड़ो को सीचने की बात नही करते !   

🙏प . पु. आचार्य श्री रत्नप्रभ सुरिश्वरजी ने  एक मास का अनसन कर 84 वर्ष की आयु को पूर्ण कर सिद्ध गिरिराज ( पालीताना) में, वीर निर्वाण संवत 84, माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन इस नाश्वर देह को छोड़ कर पंच तत्व में विलीन हुए थे।

🔵 जो भी व्यक्ति अपनी जड़ो से दूर हटा उसका पतन ही हुआ हे, बिना नीव का मकान  व बिना जड़ का वट व्रक्ष  कभी स्थाई रूप से टिक नही सका व फिर उसको कोई भी बचा नही सकता । जड़ो को हमेसा सिचते रहो सूखने मत दो      
👉 यदि आपके रगो में  "ओसवाल"  (महाजन /उपकेष)  वंश का खून हे तो आज से ही ओसवाल  स्थापना दिवस श्रावण वदी तेरस को मनाकर व इस sms को ओसवाल भाइयो तक पउचा कर, गुरु रत्नप्रभ सूरिजी का कृतग्नता उपकार मनाइए                           🙏🏻 जय गुरु रत्न प्रभ सूरिजी🙏*  
      🙏🏻भेसाशाह🙏🏻 🙏🏻जय जिनेन्द्र 🙏  🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 🙏🙏         
👉 इस विषय पर और जानकारी के लिए ::-  *श्री रत्नाकर जैन ज्ञान पुष्पमाला*  फलोदी दुवारा प्रकाशित यति श्री ज्ञानसुंदरजी द्वारा लिखित "जैन जाती महोदय"  पुस्तक का वचन व् अध्ययन करें।।    
कुछ भी जिन आज्ञा विरुद्ध लिखगया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म🙏

Comments

  1. सर जी मुझे श्री रत्नाकर जैन ज्ञान पुष्प माला फलौदी का फोन नम्बर चाहिए "जैन जाति महोदय " यह किताब खरीदना चाहता हुँ मेरा मार्गदर्शन देने का कष्ट करे धन्यवाद

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  2. राजेन्द्र लोढ़ा 24-सी मधुवन उदयपुर मोबाइल नंबर 7014894277 जगत पूज्य जैन आचार्य श्री रत्न प्रभ सुरिजी महाराज की फोटोग्राफ हो वह भी चाहिए

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  3. Sirji bahut badhia lekh hai.. 👍

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  4. Sri sri sri mal sandeswar gotra nahi h esme

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  5. श्री मान जी, जय जिनेन्द्र अलग-अलग जाति,गोत्र की विस्तृत जानकारी किस पुस्तक में मिलेगी तथा वह पुस्तक कहाँ उपलब्ध हो सकेगी ।कृपया जानकारी देने की मेहरबानी करें ।

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