अनेकान्तवाद
अनेकान्त का अर्थ है- किसी भी विचार या वस्तु को अलग अलग दष्टिकोण से देखना, समझना, परखना और सम्यक भेद द्धारा सर्व हितकारी विचार या वस्तु को मानना ही अंनेकात है। अनेकान्तवाद जैनधर्म का तीसरा मुख्य सिद्धांत है। इसे अहिंसा का ही व्यापक रूप समझना चाहिए। राग द्वेषजन्य संस्कारों के वशीभूत ने होकर दूसरे के दृष्टिबिंदु को ठीक-ठीक समझने का नाम अनेकांतवाद है। इससे मनुष्य सत्य के निकट पहुँच सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी मत या सिद्धांत को पूर्ण रूप से सत्य नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक मत अपनी अपनी परिस्थितयों और समस्याओं को लेकर उद्भूत हुआ है, अतएव प्रत्येक मत में अपनी अपनी विशेषताएँ हैं। अनेकांतवादी इन सबका समन्वय करके आगे बढ़ता है। आगे चलकर जब इस सिद्धांत को तार्किक रूप दिया गया तो यह स्याद्वाद नाम से कहा जाने लगा तथा स्यात् अस्ति', 'स्यात् नास्ति', स्यात् अस्ति नास्ति', 'स्यात् अवक्तव्य,' 'स्यात् अस्ति अवक्तव्य', 'स्यात् नास्ति अवक्तव्य' और 'स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य', इन सात भागों के कारण सप्तभंगी नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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https://t.me/JainTerapanth/5388
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