हे महाश्रमण ! मैं तुझे क्या कहूं
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सूर्य का प्रकाश कहूं या चंदमा
की शीतलता कहूं,
करुणा की झील कहूं या ज्ञान
का सागर कहूं |
कोमल की मधुरता कहूं या
शहद की मिठास कहूं,
तारा कहूं या ध्रुव तारा कहूं,
निर्मल कहूं या निर्मलता कहूं |
मां की ममता कहूं या पिता का
प्यार कहूं,
भाई का कर्तव्य कहूं या
वात्सल्य का झरना कहूं |
विद्यालय कहूं या
विश्वविद्यालय कहूं,
आलय कहूं या आत्म हिमालय
कहूं |
अनुकम्पा का प्रसाद कहूं या प्रभु का आशीर्वाद कहूं,
दिव्यता कहूं या भव्यता कहूं,
सुंदरता कहूं या आत्म सुंदरता कहूं|
नम्रता कहूं या विनम्रता कहूं,
समता कहूं या सरलता कहूं |
नोट कहूं या नोटों का बैंक कहूं,
कुछ कहे तो आध्यात्मिक
एटीएम कहूं |
तपस्वी कहूं या महातपस्वी कहूं,
यशस्वी कहूं या महायशस्वी कहूं |
उज्ज्वलता का आकाश कहूं या
संकल्पों की बरसात कहूं |
जल कहूं या जल की तरंग कहूं,
कुछ कहूं तो जीवन की उमंग कहूं |
ज्योति कहूं या ज्वाला कहूं,
कुछ कहूं तो दिव्य उजाला कहूं।
मान कहूं या आत्म सम्मान कहूं,
मैं तो तुलसी महाप्रज्ञ का हनुमान कहूं |
सत्य कहूं या शाश्वत कहूं,
समझ में नहीं आता है, मैं क्या कहूं |
अगर कुछ कहूं तो शाश्वत ज्ञाता द्रष्टा कहूं |
पुष्प कहूं या ह्रदय का हार कहूं,
अगर कुछ कहूं तो जगत का पालनहार कहूं |
विशेषण कम विशेषताएं अनेक हैं,
शब्द कम उपमाएं अनेक हैं |
हे महाश्रमण ! तुझे मैं क्या कहूं,
अगर कुछ कहूं तो ये ही कहूं |
मेरे ह्रदय की सांस कहूं, तुलसी
महाप्रज्ञ और तीर्थंकर
का साक्षात कहूं |
हे नेमा नंदन, झूमर वंदन मेरे
महाश्रमण तुझे प्रणामं
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