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जैन धर्म के कुछ अंश

पाँच-महाव्रत  1. अहिंसा 2. सत्य 3. अस्तेय  4.अपरिग्रह 5. ब्रह्मचर्य पार्श्वनाथ भगवान के चार महाव्रत थे।  1. अहिंसा 2. सत्य 3. अस्तेय  4.अपरिग्रह महावीर भगवान ने पाँचवा महाव्रत 'ब्रह्मचर्य' के रूप में स्वीकारा। ******************* जैन धर्म में पञ्चास्तिकायसार, समयसार और प्रवचनसार को 'नाटकत्रयी' कहा जाता है। जैन मतानुसार में 3 प्रमाण हैं- 1. प्रत्यक्ष 2. अनुमान  3. आगम ***************** जैन धर्म में आत्मशुद्धि पर बल दिया गया है। आत्मशुद्धि प्राप्त करने के लिये जैन धर्म में देह-दमन और कष्टसहिष्णुता को मुख्य माना गया है। निर्ग्रंथ और निष्परिग्रही होने के कारण तपस्वी महावीर नग्न अवस्था में विचरण किया करते थे। यह बाह्य तप भी अंतरंग शुद्धि के लिये ही किया जाता था। ******************* जैन धर्म में जातिभेद को स्वीकार नहीं किया गया। प्राचीन जैन ग्रंथों में कहा गया है कि सच्चा ब्राह्मण वही है जिसने राग, द्वेष और भय पर विजय प्राप्त की है और जो अपनी इंद्रियों पर निग्रह रखता है। जैन धर्म में अपने अपने कर्मों के अनुसार ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र की कल्पना की गई है, ...